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भगवान् विष्णु के अत्यंत प्रेम-लपेटे अटपटे वचन सुनकर शंकरजी मन-ही-मन मुसकराने लगे और बोले, हे नारायण ! यह आप क्या कह रहे हैं? आपसे बढ़कर मुझे और कोई प्रिय हो सकता है? औरोंकी तो बात ही क्या, पार्वती भी मुझे आपके समान प्रिय नहीं है।
भगवान् विष्णु के अत्यंत प्रेम-लपेटे अटपटे वचन सुनकर शंकरजी मन-ही-मन मुसकराने लगे और बोले, हे नारायण ! यह आप क्या कह रहे हैं? आपसे बढ़कर मुझे और कोई प्रिय हो सकता है? औरोंकी तो बात ही क्या, पार्वती भी मुझे आपके समान प्रिय नहीं है।
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भगवान् विष्णु के अत्यंत प्रेम-लपेटे अटपटे वचन सुनकर शंकरजी मन-ही-मन मुसकराने लगे और बोले, हे नारायण ! यह आप क्या कह रहे हैं? आपसे बढ़कर मुझे और कोई प्रिय हो सकता है? औरोंकी तो बात ही क्या, पार्वती भी मुझे आपके समान प्रिय नहीं है।
नित्यानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।
नित्यानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।
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नित्यानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।