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माता तुलसी की पद्मपुराण, स्कन्दपुराण आदि में वर्णित कथा (पूर्वजन्म सहित), भगवान् को शालिग्राम (शिला) हो जाने का श्राप एवं तुलसीजी से विवाह का रहस्य-
माता तुलसी की पद्मपुराण, स्कन्दपुराण आदि में वर्णित कथा (पूर्वजन्म सहित), भगवान् को शालिग्राम (शिला) हो जाने का श्राप एवं तुलसीजी से विवाह का रहस्य-
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माता तुलसी की पद्मपुराण, स्कन्दपुराण आदि में वर्णित कथा (पूर्वजन्म सहित), भगवान् को शालिग्राम (शिला) हो जाने का श्राप एवं तुलसीजी से विवाह का रहस्य-
श्रीरामं सहलक्ष्मणं सकरुणं सीतान्वितं सात्त्विकं वैदेहीमुखपद्मलुब्धमधुपं पौलस्त्यसंहारकम्।
श्रीरामं सहलक्ष्मणं सकरुणं सीतान्वितं सात्त्विकं वैदेहीमुखपद्मलुब्धमधुपं पौलस्त्यसंहारकम्।
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श्रीरामं सहलक्ष्मणं सकरुणं सीतान्वितं सात्त्विकं वैदेहीमुखपद्मलुब्धमधुपं पौलस्त्यसंहारकम्।
यस्य निःश्वसितं वेदा यो वेदेभ्योऽखिलं जगत्। निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थं महेश्वरम् ॥
यस्य निःश्वसितं वेदा यो वेदेभ्योऽखिलं जगत्। निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थं महेश्वरम् ॥
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यस्य निःश्वसितं वेदा यो वेदेभ्योऽखिलं जगत्। निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थं महेश्वरम् ॥
श्रीरामजी के अनन्य सेवक श्रीपवनकुमार के स्पर्श से देवी तो पाताल में प्रविष्ट हो गयीं और उनके स्थान पर स्वयं श्रीरामदूत देवी रूप में भयानक मुख फाड़कर खड़े हो गये और अहिरावण जितनी सामग्री देवी को अर्पित करता वे सब हनुमानजी ग्रहण कर लेते थे।
श्रीरामजी के अनन्य सेवक श्रीपवनकुमार के स्पर्श से देवी तो पाताल में प्रविष्ट हो गयीं और उनके स्थान पर स्वयं श्रीरामदूत देवी रूप में भयानक मुख फाड़कर खड़े हो गये और अहिरावण जितनी सामग्री देवी को अर्पित करता वे सब हनुमानजी ग्रहण कर लेते थे।
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श्रीरामजी के अनन्य सेवक श्रीपवनकुमार के स्पर्श से देवी तो पाताल में प्रविष्ट हो गयीं और उनके स्थान पर स्वयं श्रीरामदूत देवी रूप में भयानक मुख फाड़कर खड़े हो गये और अहिरावण जितनी सामग्री देवी को अर्पित करता वे सब हनुमानजी ग्रहण कर लेते थे।
श्रीमद्भागवत में उद्धव जी से ज्ञान चर्चा में भगवान श्री कृष्ण बताते हैं कि ब्रह्मर्षियों में भृगु, राजर्षियों में मनु, देवर्षियों में नारद और गौओं में कामधेनु मैं ही हूँ।
श्रीमद्भागवत में उद्धव जी से ज्ञान चर्चा में भगवान श्री कृष्ण बताते हैं कि ब्रह्मर्षियों में भृगु, राजर्षियों में मनु, देवर्षियों में नारद और गौओं में कामधेनु मैं ही हूँ।
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श्रीमद्भागवत में उद्धव जी से ज्ञान चर्चा में भगवान श्री कृष्ण बताते हैं कि ब्रह्मर्षियों में भृगु, राजर्षियों में मनु, देवर्षियों में नारद और गौओं में कामधेनु मैं ही हूँ।