सब जानत प्रभु प्रभुता सोई। तदपि कहें बिनु रहा न कोई॥
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काकभुसुंडि संग हम दोऊ। मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ॥
सच्चिदानंद के ज्योतिष महादेव
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद।
हनूमान सम नहिं बड़भागी। नहिं कोउ राम चरन अनुरागी॥
जो माया सब जगहि नचावा। जासु चरित लखि काहुँ न पावा॥
मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा॥
जो माया सब जगहि नचावा। जासु चरित लखि काहुँ न पावा॥
मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।
पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता॥
तन सकोचु मन परम उछाहू। गूढ़ प्रेमु लखि परइ न काहू॥
सोहति सीय राम कै जोरी। छबि सिंगारु मनहुँ एक ठोरी॥
गौतम तिय गति सुरति करि नहिं परसति पग पानि।
धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥
दीनबन्धु
वेदानुद्धरते जगन्निवहते भूगोलमुद्विभ्रते दैत्यं दारयते बलिं छलयते क्षत्रक्षयं कुर्वते।
जेहिं बलि बाँधि सहसभुज मारा।
जो सदा ही आनन्दरूप, श्रेष्ठ सुखदायी स्वरूप वाले, ज्ञान के साक्षात् विग्रह रूप है। जो संसार के द्वन्द्वों(सुख-दुःख) से रहित, व्यापक आकाश के सदृश (निर्लिप्त) है, जो एक ही परमात्म तत्त्व (तत्त्वमसि) को सदैव लक्ष्य किये रहते है। जो एक है, नित्य है, सदैव शुद्ध स्वरूप है, अचल रहने वाले
श्रीदत्त भगवान् के लीला प्रसंग
लग्यौ ललकि मुख कमल विलोकन, भूलि गई सुधि ग्राह ग्रसन की। मनु रथ पै आवत दरसावत, भुज भूषित जन सिर परसन की।
नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी॥
परशुकमलधारी दिव्यमायाविभूष: सकलदुरितहारी सर्वसौन्दर्यकोशः ।
सिंहासनगता नित्यं पद्मान्वितकरद्वया।
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः ।
शीतलाष्टमी की शुभकामनाएं
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम्-
कुम्भकरन-रावन पयोद-नाद-ईंधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो।
सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा॥
रास रसिक गोपाल लाल, ब्रजबाल-संग बिहरत बृंदाबन। सप्त सुरनि मुरली बाजति, धुनि सुनि मोहे सुर-नर-गंध्रब-पन।।
काषाय वस्त्रं कर दंड धारिणं
भगवान् श्री गणेश के महोत्कट विनायक, मयूरेश्वर, गजानन एवं धूमकेतु अवतारों की कथा- (२/४)
भगवान् श्री गणेश के महोत्कट विनायक, मयूरेश्वर, गजानन एवं धूमकेतु अवतारों की कथा (१/४)