भगवान् श्री गणेशजी के प्रादुर्भाव की विभिन्न पौराणिक कथाएँ-भाग १ (२/३)
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भगवान् श्री गणेशजी के प्रादुर्भाव की विभिन्न पौराणिक कथाएँ- भाग १ (१/३)
गणेशरूपः श्रीकृष्णः कल्पे कल्पे तवात्मजः॥
विघ्नहर्ता श्री गणेश
परब्रह्मरूपं चिदानन्दरूपं सदानन्दरूपं सुरेशं परेशम्।
श्रीगणेशजी का पौराणिक स्वरूप
शापवश मुनिवधू-मुक्तकृत, विप्रहित, यज्ञ-रक्षण-दक्ष, पक्षकर्ता।
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
रूप- सुख-शील-सीमाऽसि, भीमाऽसि रामाऽसि, वामाऽसि वर बुद्धि बानी।
दीन दयालु दिवाकर देवा। कर मुनि, मनुज, सुरासुर सेवा।।
रूप सकहिं नहिं कहि श्रुति सेषा। सो जानइ सपनेहुँ जेहिं देखा॥
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय होके सोये।
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम् ॥
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
History textbooks are filled with the Navratna of Akbar, but there is little discussion of Maharaja Vikramaditya and his Navratnas. The truth is that these 9 were the real and First Navratnas & only to Imitate Maharaja Vikramaditya, akbar created his Navranas., A Thread..
स तान् निहत्वा रणचण्डविक्रमः समीक्षमाणः पुनरेव लङ्काम्।
तात सक्रसुत कथा सुनाएहु। बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु॥
द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।
पवनतनय मन भा अति क्रोधा। गर्जेउ प्रबल काल सम जोधा॥
निज दल बिकल सुना हनुमाना। पच्छिम द्वार रहा बलवाना॥
कह त्रिजटा सुनु राजकुमारी। उर सर लागत मरइ सुरारी॥
अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा। सिय मुख ससि भए नयन चकोरा॥
सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि ललित नरलीला ॥
धरि रूप पात्रक पानि गहि श्री सत्य स्रुति जग विदित जो।
तात अनादि सिद्ध थल एहू। लोपेउ काल बिदित नहिं केहू॥
श्रीरामचन्द्रजीने चित्रकूट में भरत जी से कहा-
चित्रकूट सब दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत|
हेतु रहित जग जुग उपकारी। तुम्ह तुम्हार सेवक असुरारी॥
सब मम प्रिय नहिं तुम्हहि समाना। मृषा न कहउँ मोर यह बाना।
कर परसा सुग्रीव सरीरा । तनु भा कुलिस गई सब पीरा॥