देवराज पुरंदर के यहां नारदजी
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कपि आकृति तुम्ह कीन्हि हमारी। करिहहिं कीस सहाय तुम्हारी॥
मामवलोकय पंकज लोचन। कृपा बिलोकनि सोच बिमोचन॥
कौसल्या जब बोलन जाई। ठुमुकु ठुमुकु प्रभु चलहिं पराई॥
दामोदर.❤️
दामोदर
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लछिमन समुझाए बहु भाँति। पूछत चले लता तरु पाँती॥
पंचबटी बट बिटप तर सीता लखन समेत।
तुलसी सहित सनेह नित सुमिरहु सीता राम।
नमो वेदादिरूपाय ओङ्काराय नमो नमः ।
अस्मत्प्रसादसुमुखः कलया कलेश इक्ष्वाकुवंश अवतीर्य गुरोर्निदेशे।
अमर अनंदित मुनि मुदित मुदित भुवन दस चारि ।
सुनु हनुमंत संग लै तारा। करि बिनती समुझाउ कुमारा॥
धनुष चढ़ाइ कहा तब जारि करउँ पुर छार। ब्याकुल नगर देखि तब आयउ बालिकुमार॥
सहसभुज-मत्तगजराज-रनकेसरी परसुधर गर्बु जेहि देखि बीता॥
बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
रिपु सम मोहि मारेसि अति भारी। हरि लीन्हसि सर्बसु अरु नारी॥
आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक पर्बत निअराया॥
सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी॥
पर्वत राज हिमाचल से ब्रह्मर्षि नारद जी कहते हैं ✨
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् |
व्यासाय विष्णुरूपाय, व्यासरूपाय विष्णवे।
बहुरि राम छबिधाम बिलोकी। रहेउ ठटुकि एकटक पल रोकी॥
सदा राम प्रिय होहु तुम्ह सुभ गुन भवन अमान।
कागभुशुण्डि जी कहते है, हे नाथ! मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार कहा, कुछ भी छिपा नहीं रखा। (फिर भी) श्री रघुवीर के चरित्र समुद्र के समान हैं, क्या उनकी कोई थाह पा सकता है?
चिरंजीवी काग श्री कागभुसुंडि जी की सम्पूर्ण कथा
नाथ जथामति भाषेउँ राखेउँ नहिं कछु गोइ।
कागभुशुण्डि जी की कथा
गरुड़ जी बोले, संत और असंत का मर्म (भेद) आप जानते हैं, उनके सहज स्वभाव का वर्णन कीजिए। फिर कहिए कि श्रुतियों में प्रसिद्ध सबसे महान् पुण्य कौन सा है और सबसे महान् भयंकर पाप कौन है॥
गरुड़जी और कागभुशुण्डिजी संवाद
संत असंत मरम तुम्ह जानहु। तिन्ह कर सहज सुभाव बखानहु॥
गरुड़जी और कागभुशुण्डि संवाद
बाँह छुड़ाए जात हौ, निबल जानिकै मोहि।