सूरदासजी की जीवनी (अष्टछाप के ८ संत) २/३
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चित्रकेतु व भगवान श्रीशेष जी
फिर ये चित्रकेतु शिवजी का व्यंग करते है तो पार्वतीजी क्रोधित होकर इनको राक्षस होने का श्राप दे देती है, और ये वृत्तासुर बन जाते है।
सो सुतंत्र अवलंब न आना। तेहि आधीन ग्यान बिग्याना॥
वह भक्ति स्वतंत्र है, उसको (ज्ञान-विज्ञान आदि किसी) दूसरे साधन का सहारा (अपेक्षा) नहीं है। ज्ञान और विज्ञान तो उसके अधीन हैं। हे तात! भक्ति अनुपम एवं सुख की मूल है और वह तभी मिलती है, जब संत अनुकूल (प्रसन्न) होते हैं॥
राम सिंधु घन सज्जन धीरा। चंदन तरु हरि संत समीरा॥
हरषे हेतु हेरि हर ही को। किय भूषन तिय भूषन ती को॥
भगवान के दिव्य आयुध धारण करने का रहस्य तथा उनका प्रिय पात्र बनना-
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी।
भगवान् के शस्त्र धारण का रहस्य
धन्य जसोदा भाग तिहारौ..
असंदेशात्तु रामस्य तपसश्चानुपालनात् ।
शक्या लोभयितुं नाहमैश्वर्येण धनेन वा।
गुरुदेव श्री समर्थ रामदास को श्रीहरि विठ्ठल में भगवान् श्रीरामचंद्रजी के दर्शन।
प्रगटे श्रीवामन अवतार, निरख अदित मुख करत प्रशंसा, जगजीवन आधार।
तुम्ह माया भगवान सिव सकल गजत पितु मातु।
सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी
वेदों में श्री गणेश/ विघ्नहर्ता श्रीगणेश (३/३)
गणेश चतुर्थी का पूजा विधान (२/३)
गणेश चतुर्थी का पूजा विधान एवं वेदों में भगवान् श्री गणेश (१/३)
शिव पुराण में गणेश चतुर्थी का रहस्य, माहात्म्य एवं वर्षभर की चतुर्थीयों की संक्षिप्त कथाऐं एवं व्रत विधि (२/३)
शिव पुराण में गणेश चतुर्थी का रहस्य, माहात्म्य एवं वर्षभर की चतुर्थियों की कथाएं एवं व्रत विधि (१/३)
शिवजी का प्रदोष नृत्य
बर दायक प्रनतारति भंजन। कृपासिंधु सेवक मन रंजन।
यद्यपि श्री रघुवीर समस्त लोकों के स्वामी हैं, पर उनका स्वभाव अत्यंत ही कोमल है। मिलते ही प्रभु आप पर कृपा करेंगे और आपका एक भी अपराध वे हृदय में नहीं रखेंगे॥
श्री रघुनाथ जी का सहज स्वभाव-
सर्ब सर्बगत सर्ब उरालय। बससि सदा हम कहुँ परिपालय
धातुः कमण्डलुजलं तदुरुक्रमस्य पादावनेजनपवित्रतया नरेन्द्र ।
भवान् नारायणो देवः श्रीमांश्चक्रायुधः प्रभुः।
जिन बाँध्यो सुर असुर नाग नर प्रबल करमकी डोरी।
जाकी मायाबस बिरंचि सिव, नाचत पार न पायो। करतल ताल बजाय ग्वाल-जुवतिन्ह सोइ नाच नचायो॥
तेहिं गिरि रुचिर बसइ खग सोई तासु नास कल्पांत न होई॥