शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥
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अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि। सदा संभु अरधंग निवासिनि॥
अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि। सदा संभु अरधंग निवासिनि॥
साक्षाज्जगद्धेतुश्चिच्छक्तिर्जगदात्मिका
देखा श्रमित बिभीषनु भारी। धायउ हनूमान गिरि धारी॥
सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥
जरत सकल सुर बृंद बिषम गरल जेहिं पान किय।
एष रामः परो विष्णुरादिनारायणः स्मृतः।
सनातन धर्म ही जगत् की स्थिति का आधार है, क्योंकि यह सर्वव्यापक है, सार्वभौमिक है, उन सब धर्मों से पुराना है जिनको मनुष्य ने बनाया है। जो क्योंकि जो धर्मं जगत् का आधार है, निश्चित ही उसका जन्म जगत् की सृष्टि के समकालीन ही है, अनादि है।
विनु छल बिस्वनाथ पद नेहू। राम भगत कर लच्छन एहू ॥
सब साधन कर सुफल सुहावा। लखन राम सिय दरसनु पावा॥
करम बचन मन छाड़ि छलु जब लगि जनु न तुम्हार।
मारुत सुत मैं कपि हनुमाना। नामु मोर सुनु कृपानिधाना॥
चल्यो नभ नाइ माथ रघुनाथहि, सरिस न बेग बियो है॥
गोस्वामी तुलसीदास जी कृत हनुमान जी का अचूक मंत्रात्मक काव्य हनुमान बाहुक
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना का अर्थ
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
तुम्हारो मंत्र विभीषण माना का अर्थ
नमस्ते सिद्धसेनानि आयें मन्दरवासिनि।
चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका। भए नाम जपि जीव बिसोका॥
नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू। भगत सिरोमनि भे प्रहलादू॥
नारायण
गुर श्रुति संमत धरम फलु पाइअ बिनहिं कलेस।
सिर जटा मुकुट प्रसून बिच बिच अति मनोहर राजहीं। जनु नीलगिरि पर तड़ित पटल समेत उडुगन भ्राजहीं॥
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
शारदीय नवरात्र
शारदीय नवरात्रि का प्रारंभिक इतिहास, माताजी के पूजन की विधि (२/३)
तात गहरु होइहि तोहि जाता। काजु नसाइहि होत प्रभाता॥
जो कछु कहेहु सत्य सब सोई। सखा बचन मम मृषा न होई॥
अब प्रभु कृपा करहु एहि भांति सब तजि भजन करौ दिन राति।
जो गति जोग बिराग जतन करि नहिं पावत मुनि ग्यानी।
पूर्णकाम, आनंद की राशि, अजन्मा और अविनाशी श्री रामजी मनुष्यों के चरित्र कर रहे हैं। आगे (जाने पर) उन्होंने गृध्रपति जटायु को पड़ा देखा। वह श्री रामचंद्रजी के चरणों का स्मरण कर रहा था, जिनमें (ध्वजा, कुलिश आदि की) रेखाएँ (चिह्न) हैं॥
भगवान श्रीराम के ४८ चरण चिन्ह-