वृषभानुसुता जगतजननी श्री राधाजी के प्राकट्य का रहस्य, समय एवं राधाष्टमी व्रत का माहात्म्य- (२/३)
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श्री ललितामहात्रिपुरसुंदरी
सो नर इंद्रजाल नहिं भूला। जा पर होइ सो नट अनुकूला॥
मरकत मृदुल कलेवर स्यामा। अंग अंग प्रति छबि बहु कामा॥
राम चलत अति भयउ बिषादू। सुनि न जाइ पुर आरत नादू॥
अंतरजामिहुतें बड़े बाहेरजामि हैं राम, जे नाम
कोई तन दुखी कोई मन दुखी कोई धन बिन रहे उदास।।
सबसे ऊँची प्रेम सगाई।
जसुमति अपनौ पुन्य बिचारै। बार-बार सिसु बदन निहारै॥ अँग फरकाइ अलप मुसकाने। या छबि की उपमा को जानै॥
याज्ञवल्क्य जी भरद्वाज जी से कहते है, श्रीराम जी की कथा चंद्रमा की किरणों के समान है, जिसे संतरूपी चकोर सदा पान करते हैं। ऐसा ही संदेह पार्वतीजी ने भी किया था, तब महादेव ने विस्तार से उसका उत्तर दिया था।
अवतार हेतु पार्वतीजी का प्रश्न और महादेव का उत्तर
जो गौतम मुनिकी स्त्री अहल्याको शापसे मुक्त करनेवाले, विश्वामित्रके यज्ञकी रक्षा करनेमें बड़े चतुर और अपने भक्तोंका पक्ष करनेवाले है तथा राजा जनककी सभामें शिवजी का धनुष तोड़कर महान् तेजस्वी एवं क्रोधी परशुरामजीके गर्व को हरण करनेवाले हैं ॥
कोणार्क सूर्य मंदिर एवं वेदों में भगवान् सूर्य (१/२)
अंसन्ह सहित देह धरि ताता। करिहउँ चरित भगत सुखदाता॥
सुनु हनुमंत संग लै तारा। करि बिनती समुझाउ कुमारा॥
काली काली महाकाली कालिके परमेश्वरी ।
भगवान श्रीकृष्ण और भगवती श्रीराधाजी के दिव्य युगल चरण चिन्ह
कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा ||
शारवाना-भावाया नमः ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा, देवसेना मनः कांता कार्तिकेया नमोस्तुते।।
बृहस्पतिर्मन्त्रविद्धि जजाप च जुहाव च।
तब छह मुख वाले पुत्र (स्वामिकार्तिक) का जन्म हुआ, जिन्होंने युद्ध में तारकासुर को मारा। वेद, शास्त्र और पुराणों में स्वामिकार्तिक के जन्म की कथा प्रसिद्ध है और सारा जगत् उसे जानता है।
तब जनमेउ षटबदन कुमारा। तारकु असुरु समर जेहिं मारा॥
कार्तिकेय-देवसेना (षष्ठी देवी) का विवाह
सत्ययुग, त्रेता और द्वापर में जो गति पूजा, यज्ञ और योग से प्राप्त होती है, वही गति कलियुग में लोग वही गति केवल भगवान के नाम से पा जाते हैं॥ (२/३)
कलयुग का महान साधन नामजप
कृतजुग त्रेताँ द्वापर पूजा मख अरु जोग।
मयूरासीन श्री स्वामी कार्तिकेय का दुर्लभ चित्र।
शास्त्रों में माँ दुर्गा
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥
कल्पान्ते मम सायुज्यं प्राप्स्यसे नात्र संशयः।
पुरस्कार वितरण
षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता। बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा॥
Chath pooja
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥
सर चाप मनोहर त्रोन धरं। जलजारुन लोचन भूपबरं॥