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सीताजी कहती है, हा ईश्वर । तुमने यह क्या किया और क्या करनेका विचार है? चाहे जो हो, मैं रामको छोड़कर दूसरे किसीको नहीं वरूंगी। यदि मेरे पिता मुझे दूसरे किसी को देंगे तो मैं महलपर से गिरकर अवधा विष आदिके द्वारा शीघ्र प्राण त्याग दूंगी। (आनंद रामायण)
सीताजी कहती है, हा ईश्वर । तुमने यह क्या किया और क्या करनेका विचार है? चाहे जो हो, मैं रामको छोड़कर दूसरे किसीको नहीं वरूंगी। यदि मेरे पिता मुझे दूसरे किसी को देंगे तो मैं महलपर से गिरकर अवधा विष आदिके द्वारा शीघ्र प्राण त्याग दूंगी। (आनंद रामायण)
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सीताजी कहती है, हा ईश्वर । तुमने यह क्या किया और क्या करनेका विचार है? चाहे जो हो, मैं रामको छोड़कर दूसरे किसीको नहीं वरूंगी। यदि मेरे पिता मुझे दूसरे किसी को देंगे तो मैं महलपर से गिरकर अवधा विष आदिके द्वारा शीघ्र प्राण त्याग दूंगी। (आनंद रामायण)
आप समरूप, ब्रह्म, अविनाशी, नित्य, एकरस, स्वभाव से ही उदासीन (शत्रु-मित्र-भावरहित), अखंड, निर्गुण (मायिक गुणों से रहित), अजन्मे, निष्पाप, निर्विकार, अजेय, अमोघशक्ति (जिनकी शक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती) और दयामय हैं॥
आप समरूप, ब्रह्म, अविनाशी, नित्य, एकरस, स्वभाव से ही उदासीन (शत्रु-मित्र-भावरहित), अखंड, निर्गुण (मायिक गुणों से रहित), अजन्मे, निष्पाप, निर्विकार, अजेय, अमोघशक्ति (जिनकी शक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती) और दयामय हैं॥
भगवान् श्री राम का वास्तविक स्वरूप और उनकी भक्ति
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आप समरूप, ब्रह्म, अविनाशी, नित्य, एकरस, स्वभाव से ही उदासीन (शत्रु-मित्र-भावरहित), अखंड, निर्गुण (मायिक गुणों से रहित), अजन्मे, निष्पाप, निर्विकार, अजेय, अमोघशक्ति (जिनकी शक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती) और दयामय हैं॥