जथा भूमि सब बीजमय नखत निवास अकास।
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नाम प्रसाद संभु अबिनासी। साजु अमंगल मंगल रासी॥
उभय अगम जुग सुगम नाम तें। कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें॥
नारद जानेउ नाम प्रतापू। जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू॥
ग्यान निधान अमान मानप्रद। पावन सुजस पुरान बेद बद॥
हनूमंस्ते प्रसन्नोऽस्मि वरं वरय काङ्क्षितम्।
अत्रिपत्नी महाभागा दयाक्षान्त्यादिभूषिता।
अत्रेरपत्यमभिकाङ्क्षत आह तुष्टो दत्तो मयाहमिति यद् भगवान् स दत्तः।
भक्तौ सञ्जातमात्रायां मत्तत्त्वानुभवस्तदा।
देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
न्यासभूतं तदा न्यस्तमस्माकं पूर्वजे विभौ।
जासु नाम सुमिरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा॥
दंडक बन प्रभु कीन्ह सुहावन जन मन अमित नाम किए पावन॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
राम भगत जग चारि प्रकारा। सुकृती चारिउ अनघ उदारा॥
राम, भरत, लद्धिमन ललित, सत्रुसमन सुभ नाम।
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद।
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद ।
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद।
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
जगतजननी भगवती श्री सीता जी का अवतरण (२/३)
जगतजननी माता सीताजी का (अवतरण का हेतु) सांसारिक जीवों पर स्नेह (३/३)
माता सीताजी का चण्डिका अवतार।
जनकात्मजे राघवप्रिये कनकभासुरे भक्तपालिके।
सीताजी कहती है, हा ईश्वर । तुमने यह क्या किया और क्या करनेका विचार है? चाहे जो हो, मैं रामको छोड़कर दूसरे किसीको नहीं वरूंगी। यदि मेरे पिता मुझे दूसरे किसी को देंगे तो मैं महलपर से गिरकर अवधा विष आदिके द्वारा शीघ्र प्राण त्याग दूंगी। (आनंद रामायण)
मैथिली जानकी सीता वैदेही जनकात्मजा।
धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी। बेद तत्त्व नृप तव सुत चारी॥
रामजी का अजेय धर्मरथ (व्याख्या)
श्री विघ्नेश्वार्य नम: