यानीह विश्वविलयोद्भववृत्तिहेतुः कर्माण्यनन्यविषयाणि हरिश्चकार।
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पाराशर्यं परमपुरुषं विश्ववेदैकयोनिं विद्याधारं विमलमनसं वेदवेदान्तवेद्यम्।
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा।
अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि। सदा संभु अरधंग निवासिनि॥
जय सच्चिदानंद जग पावन। अस कहि चलेउ मनोज नसावन॥
बिस्वास करि सब आस परिहरि दास तव जे होइ रहे।
कृपादृष्टि करि बृष्टि प्रभु अभय किए सुर बृंद।
जौं तपु करै कुमारि तुम्हारी। भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी॥
सेस गनेस महेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
परिहरि रामु सीय जग माहीं। कोउ न कहिहि मोर मत नाहीं॥
मैं पा परउँ कहइ जगदंबा। तुम्ह गृह गवनहु भयउ बिलंबा॥
मेरा तो करोड़ जन्मों तक यही हठ रहेगा कि या तो शिवजी को वरूँगी, नहीं तो कुमारी ही रहूँगी। स्वयं शिवजी सौ बार कहें, तो भी नारदजी के उपदेश को न छोड़ूँगी॥ (२/२)
हरतालिका तीज
जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी॥
औरउ एक कहउँ निज चोरी। सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी ॥
कुंडल लोल कपोल विराजत सुंदरता चल आई॥
भगवान् का गोविन्द नाम कार्तिक शुक्ल अष्टमी को ही पड़ा था, गौमाता को समर्पित गोपाष्टमी महोत्सव (१/२)
देखा श्रमित बिभीषनु भारी। धायउ हनूमान गिरि धारी॥
भगवान् की वामनलीला का रहस्य (२/२)
भगवान् की वामनलीला का रहस्य (१/२)
वासुदेवो भगवतां त्वं तु भागवतेष्वहम्।
कंसवध
धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥
लागे करन ब्रह्म उपदेसा। अज अद्वैत अगुन हृदयेसा॥
भगति कि साधन कहउँ बखानी। सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी॥
कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति। सहज कृपन सन सुंदर नीति॥
अगम पंथ बनभूमि पहारा । करि केहरि सर सरित अपारा॥
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्। देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
एकादशी व्रत का रहस्य, महत्व एवं शास्त्रोक्त विधान-(१/३)
"संघर्ष जितना बड़ा होगा, जीत भी उतनी ही शानदार होगी।"