सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना ॥
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काषाय वस्त्रं करदंडधारिणं कमंडलु पद्मकरण शंखम्।
जलादिनाथ भगवान् श्रीवरुण
कर सारंग साजि कटि भाथा। अरि दल दलन चले रघुनाथा॥
को साहिब सेवकहि नेवाजी। आपु समाज साज सब साजी॥
या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः।
सरसिज लोचन बाहु बिसाला। जटा मुकुट सिर उर बनमाला॥
सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहिं जाना।
ॐ घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
गुरु सरसइ सिंधुर बदन ससि सुरसरि सुरगाइ।
वसन्त पंचमी की शुभकामनाएं-
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।
वीणा वादिनी
लव निमेष परमानु जुग बरष कलप सर चंड।
सगुन ध्यान रुचि सरस नहिं निर्गुन मन ते दूरि।
आगें राम अनुज पुनि पाछें। मुनि बर बेष बने अति काछें॥
माता यशोदा ने कन्हैया को सुनाई भगवान् श्री रामचन्द्र जी की कहानी-
रिपु सम मोहि मारेसि अति भारी। हरि लीन्हसि सर्बसु अरु नारी॥
सुग्रीवजी ने कहा- हे रघुवीर! सुनिए। सोच छोड़ दीजिए और मन में धीरज लाइए। मैं सब प्रकार से आपकी सेवा करूँगा, जिस उपाय से जानकी जी आकर आपको मिलें॥
सखा सुग्रीव
कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा। तजहु सोच मन आनहु धीरा॥
राममुद्रिका मिलने पर जगतजननी जानकीजी के हृदय के भाव का सुंदर गायन।
अजहुँ जासु उर सपनेहुँ काऊ। बसहुँ लखनु सिय रामु बटाऊ॥
जनगुन रज गिरि गनि, सकुचत निज गुन गिरि रज परमानु हैं।
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोल गंवार शुद्र पशु नारी चौपाई की स्वामी श्रीरामसुखदास जी महाराज द्वारा व्याख्या
"हम ॐकारस्वरूप पवित्रकीर्ति भगवान् श्रीरामजी को नमस्कार करते है। आपमे सत्पुरुषो के लक्षण, शील व आचरण विद्यमान है, आप बड़े ही संयतचित्त, लोकाराधनतत्पर, साधुताकी परीक्षाके लिये कसौटी के समान और अत्यन्त ब्राह्मणभक्त हैं। ऐसे महापुरुष महाराज श्रीरामको हमारा आपको पुनः पुनः प्रणाम है।"
श्री हनुमानजी कृत श्रीराम स्तुति
श्रीशुकदेवजी कहते है, राजन् किम्पुरुषवर्ष मे श्रीलक्ष्मणजी के बड़े भाई, आदिपुरुष सीताहृदयाभिराम भगवान् श्रीरामजी के चरणो की सन्निधि के रसिक परम भागवत श्रीहनुमान्जी अन्य सेवको सहित अविचल भक्तिभावसे उनकी उपासना कर अन्य गन्धर्वो सहित आर्षृिषेण भगवान् श्रीरामजी की गुणगाथा गाते है।
श्री हनुमानजी कृत श्री रामचन्द्र जी की परमपावन स्तुति
एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास।
सिबि दधीच हरिचंद नरेसा । सहे धरम हित कोटि कलेसा॥
रन्तिदेव की कथा
द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।
नारदपंचरात्र मे वर्णित श्रीराधाजी के इन सैंतीस नामो से युक्त स्तोत्र का पाठ करनेवाला इस लोकमे अचल लक्ष्मी व परलोक मे हरि चरणों मे भक्ति प्राप्त करता है।