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ॐ घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
ॐ घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
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ॐ घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
सुग्रीवजी ने कहा- हे रघुवीर! सुनिए। सोच छोड़ दीजिए और मन में धीरज लाइए। मैं सब प्रकार से आपकी सेवा करूँगा, जिस उपाय से जानकी जी आकर आपको मिलें॥
सुग्रीवजी ने कहा- हे रघुवीर! सुनिए। सोच छोड़ दीजिए और मन में धीरज लाइए। मैं सब प्रकार से आपकी सेवा करूँगा, जिस उपाय से जानकी जी आकर आपको मिलें॥
सखा सुग्रीव
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सुग्रीवजी ने कहा- हे रघुवीर! सुनिए। सोच छोड़ दीजिए और मन में धीरज लाइए। मैं सब प्रकार से आपकी सेवा करूँगा, जिस उपाय से जानकी जी आकर आपको मिलें॥
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोल गंवार शुद्र पशु नारी चौपाई की स्वामी श्रीरामसुखदास जी महाराज द्वारा व्याख्या
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प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
"हम ॐकारस्वरूप पवित्रकीर्ति भगवान् श्रीरामजी को नमस्कार करते है। आपमे सत्पुरुषो के लक्षण, शील व आचरण विद्यमान है, आप बड़े ही संयतचित्त, लोकाराधनतत्पर, साधुताकी परीक्षाके लिये कसौटी के समान और अत्यन्त ब्राह्मणभक्त हैं। ऐसे महापुरुष महाराज श्रीरामको हमारा आपको पुनः पुनः प्रणाम है।"
"हम ॐकारस्वरूप पवित्रकीर्ति भगवान् श्रीरामजी को नमस्कार करते है। आपमे सत्पुरुषो के लक्षण, शील व आचरण विद्यमान है, आप बड़े ही संयतचित्त, लोकाराधनतत्पर, साधुताकी परीक्षाके लिये कसौटी के समान और अत्यन्त ब्राह्मणभक्त हैं। ऐसे महापुरुष महाराज श्रीरामको हमारा आपको पुनः पुनः प्रणाम है।"
श्री हनुमानजी कृत श्रीराम स्तुति
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"हम ॐकारस्वरूप पवित्रकीर्ति भगवान् श्रीरामजी को नमस्कार करते है। आपमे सत्पुरुषो के लक्षण, शील व आचरण विद्यमान है, आप बड़े ही संयतचित्त, लोकाराधनतत्पर, साधुताकी परीक्षाके लिये कसौटी के समान और अत्यन्त ब्राह्मणभक्त हैं। ऐसे महापुरुष महाराज श्रीरामको हमारा आपको पुनः पुनः प्रणाम है।"
श्रीशुकदेवजी कहते है, राजन् किम्पुरुषवर्ष मे श्रीलक्ष्मणजी के बड़े भाई, आदिपुरुष सीताहृदयाभिराम भगवान् श्रीरामजी के चरणो की सन्निधि के रसिक परम भागवत श्रीहनुमान्जी अन्य सेवको सहित अविचल भक्तिभावसे उनकी उपासना कर अन्य गन्धर्वो सहित आर्षृिषेण भगवान् श्रीरामजी की गुणगाथा गाते है।
श्रीशुकदेवजी कहते है, राजन् किम्पुरुषवर्ष मे श्रीलक्ष्मणजी के बड़े भाई, आदिपुरुष सीताहृदयाभिराम भगवान् श्रीरामजी के चरणो की सन्निधि के रसिक परम भागवत श्रीहनुमान्जी अन्य सेवको सहित अविचल भक्तिभावसे उनकी उपासना कर अन्य गन्धर्वो सहित आर्षृिषेण भगवान् श्रीरामजी की गुणगाथा गाते है।
श्री हनुमानजी कृत श्री रामचन्द्र जी की परमपावन स्तुति
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श्रीशुकदेवजी कहते है, राजन् किम्पुरुषवर्ष मे श्रीलक्ष्मणजी के बड़े भाई, आदिपुरुष सीताहृदयाभिराम भगवान् श्रीरामजी के चरणो की सन्निधि के रसिक परम भागवत श्रीहनुमान्जी अन्य सेवको सहित अविचल भक्तिभावसे उनकी उपासना कर अन्य गन्धर्वो सहित आर्षृिषेण भगवान् श्रीरामजी की गुणगाथा गाते है।
नारदपंचरात्र मे वर्णित श्रीराधाजी के इन सैंतीस नामो से युक्त स्तोत्र का पाठ करनेवाला इस लोकमे अचल लक्ष्मी व परलोक मे हरि चरणों मे भक्ति प्राप्त करता है।
नारदपंचरात्र मे वर्णित श्रीराधाजी के इन सैंतीस नामो से युक्त स्तोत्र का पाठ करनेवाला इस लोकमे अचल लक्ष्मी व परलोक मे हरि चरणों मे भक्ति प्राप्त करता है।
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नारदपंचरात्र मे वर्णित श्रीराधाजी के इन सैंतीस नामो से युक्त स्तोत्र का पाठ करनेवाला इस लोकमे अचल लक्ष्मी व परलोक मे हरि चरणों मे भक्ति प्राप्त करता है।