देखा भरत बिसाल अति निसिचर मन अनुमानि।
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भगवती
तेहिं मध्य कोसलराज सुंदर स्याम तन सोभा लही।
श्रीमध्वाचार्य जयंती की शुभकामनाएं
श्रीहरि
भक्त विष्णुदास पर कृपा
नीलकंठ
जय बाबा अमरनाथ
रुद्र
जान्यो मनुज करि दनुज कानन दहन पावक हरि स्वयं।
जल भरि नयन कहहिं रघुराई। तात कर्म निज तें गति पाई॥
चरनपीठ करुनानिधान के। जनु जुग जामिक प्रजा प्रान के॥
जब रघुनाथ समर रिपु जीते। सुर नर मुनि सब के भय बीते॥
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता..
कोजागरव्रत एवं शारद पूर्णिमा का रहस्य
रणरंगधीरं
वैकुंठाधिपति
अत्यन्त प्रेम के कारण वह अधीर हो गई। उसका शरीर पुलकित हो उठा, मुख से वचन कहने में नहीं आते थे। वह अत्यन्त बड़भागिनी अहल्या प्रभु के चरणों से लिपट गई और उसके दोनों नेत्रों से जल (प्रेम और आनंद के आँसुओं) की धारा बहने लगी॥
सम्पूर्ण सिद्धिदायक माता अहल्या कृत भगवान् की स्तुति
अति प्रेम अधीरा पुलक शरीरा मुख नहिं आवइ बचन कही।
सम्पूर्ण सिद्धिदायक माता अहल्या कृत स्तुति
सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे॥।
कोटिन्ह बाजिमेध प्रभु कीन्हे। दान अनेक द्विजन्ह कहँ दीन्हे॥
मोहिनी अवतार (राजा रवि वर्मा, १८९४)
न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम् ॥
कार्तिक मास की महिमा एवं व्रत विधान (२/२)
सिंधुसुता
श्री घाटी सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर
भगवती
भगवती
श्रीराधाजी
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
ये मंत्र