सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना।
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ऐसे बेहाल बिवाइन सों, पग कंटक जाल लगे पुनि जोए।
कंसवध
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
गौमाता
समदरसी मोहि कह सब कोऊ। सेवक प्रिय अनन्य गति सोऊ॥
श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।
चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालीगन। लगे लेन दल फूल मुदित मन॥
स्वामी बाल सुब्रमण्यम
पुरुषारथ स्वारथ सकल परमारथ परिनाम।
वृन्दावनेश्वर वृन्दावनेश्वरी
विप्रप्रियं
मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।
5 प्रकार के भक्तिरस
अयि नन्दतनुज किंकरं पतितं मां विषमे भवाम्बुधौ।
श्री चैतन्य महाप्रभु
सिबि दधीच हरिचंद नरेसा। सहे धरम हित कोटि कलेसा॥
महाराज शिबि की कथा
शिबि, दधीचि और राजा हरिश्चन्द्र ने धर्म के लिए करोड़ों (अनेकों) कष्ट सहे थे। बुद्धिमान राजा रन्तिदेव और बलि बहुत से संकट सहकर भी धर्म को पकड़े रहे (उन्होंने धर्म का परित्याग नहीं किया)॥
महाराज शिबि की कथा
भरत सील गुर सचिव समाजू। सकुच सनेह बिबस रघुराजू॥
सुनत राम अति कोमल बानी। बालि सीस परसेउ निज पानी॥
आचार्य उपमन्यु एवं भगवान् श्रीकृष्ण
सदा संभु अरधंग निवासिनि॥
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः।
श्री लक्ष्मीनारायण
युधिष्ठिरजी का राजसूयज्ञ
देवी मातंगी
कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥
महादेव
गिरिजा संत समागम सम न लाभ कछु आन।
गदाधर