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हनुमानजी ने घोषणा की, मै अनायास ही महान् पराक्रम करने वाले कोसलनरेश श्रीरामचन्द्रजी का दास हूँ। मेरा नाम हनुमान् है। मैं वायु का पुत्र तथा शत्रुसेना का संहार करने वाला हूँ।
हनुमानजी ने घोषणा की, मै अनायास ही महान् पराक्रम करने वाले कोसलनरेश श्रीरामचन्द्रजी का दास हूँ। मेरा नाम हनुमान् है। मैं वायु का पुत्र तथा शत्रुसेना का संहार करने वाला हूँ।
आचार्य हनुमानजी
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हनुमानजी ने घोषणा की, मै अनायास ही महान् पराक्रम करने वाले कोसलनरेश श्रीरामचन्द्रजी का दास हूँ। मेरा नाम हनुमान् है। मैं वायु का पुत्र तथा शत्रुसेना का संहार करने वाला हूँ।
भगवान् विष्णु दक्ष प्रजापति से कहते हैं, हे विप्र.. हम तीनों एकरूप हैं, और समस्त भूतों की आत्मा हैं, हमारे अंदर जो भेद-भाव नहीं करता,निसंदेह वह शान्ति को प्राप्त होता है।
भगवान् विष्णु दक्ष प्रजापति से कहते हैं, हे विप्र.. हम तीनों एकरूप हैं, और समस्त भूतों की आत्मा हैं, हमारे अंदर जो भेद-भाव नहीं करता,निसंदेह वह शान्ति को प्राप्त होता है।
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भगवान् विष्णु दक्ष प्रजापति से कहते हैं, हे विप्र.. हम तीनों एकरूप हैं, और समस्त भूतों की आत्मा हैं, हमारे अंदर जो भेद-भाव नहीं करता,निसंदेह वह शान्ति को प्राप्त होता है।
कार्तिक मास का रहस्य (कथा), माता सत्यभामा का पूर्वजन्म, कार्तिक माहात्म्य एवं कार्तिक माह के पर्वों का संक्षिप्त विवरण (२/३)
कार्तिक मास का रहस्य (कथा), माता सत्यभामा का पूर्वजन्म, कार्तिक माहात्म्य एवं कार्तिक माह के पर्वों का संक्षिप्त विवरण (२/३)
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कार्तिक मास का रहस्य (कथा), माता सत्यभामा का पूर्वजन्म, कार्तिक माहात्म्य एवं कार्तिक माह के पर्वों का संक्षिप्त विवरण (२/३)
सुग्रीवजी ने कहा- हे रघुवीर! सुनिए। सोच छोड़ दीजिए और मन में धीरज लाइए। मैं सब प्रकार से आपकी सेवा करूँगा, जिस उपाय से जानकी जी आकर आपको मिलें॥
सुग्रीवजी ने कहा- हे रघुवीर! सुनिए। सोच छोड़ दीजिए और मन में धीरज लाइए। मैं सब प्रकार से आपकी सेवा करूँगा, जिस उपाय से जानकी जी आकर आपको मिलें॥
सखा सुग्रीव
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सुग्रीवजी ने कहा- हे रघुवीर! सुनिए। सोच छोड़ दीजिए और मन में धीरज लाइए। मैं सब प्रकार से आपकी सेवा करूँगा, जिस उपाय से जानकी जी आकर आपको मिलें॥
महाराजा जनक की पुत्री, जगत् की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूँ, जिनकी कृपा से मैं निर्मल बुद्धि पाता हूँ॥
महाराजा जनक की पुत्री, जगत् की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूँ, जिनकी कृपा से मैं निर्मल बुद्धि पाता हूँ॥
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महाराजा जनक की पुत्री, जगत् की माता और करुणा निधान श्री रामचन्द्रजी की प्रियतमा श्री जानकीजी के दोनों चरण कमलों को मैं मनाता हूँ, जिनकी कृपा से मैं निर्मल बुद्धि पाता हूँ॥
तब उन्होंने राम-नाम से अंकित अत्यंत सुंदर एवं मनोहर अँगूठी देखी। अँगूठी को पहचानकर माता सीताजी आश्चर्यचकित होकर उसे देखने लगीं और हर्ष तथा विषाद से हृदय में अकुला उठीं॥
तब उन्होंने राम-नाम से अंकित अत्यंत सुंदर एवं मनोहर अँगूठी देखी। अँगूठी को पहचानकर माता सीताजी आश्चर्यचकित होकर उसे देखने लगीं और हर्ष तथा विषाद से हृदय में अकुला उठीं॥
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तब उन्होंने राम-नाम से अंकित अत्यंत सुंदर एवं मनोहर अँगूठी देखी। अँगूठी को पहचानकर माता सीताजी आश्चर्यचकित होकर उसे देखने लगीं और हर्ष तथा विषाद से हृदय में अकुला उठीं॥