भगवती श्री महालक्ष्मी व्रत (सोरहिया वृत) (१/२)
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भगवती श्री महालक्ष्मी व्रत ( सोरहिया वृत) (२/२)
बचन काँय मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही।।
जय गणेश
जय निर्गुन जय जय गुन सागर। सुख मंदिर सुंदर अति नागर॥
नारायण
भक्त विमलतीर्थ
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
गुरुदेव दत्त
गुन सील कृपा परमायतनं। प्रनमामि निरंतर श्रीरमनं॥
भगवती
श्रीराधाजी
करतल बान धनुष अति सोहा। देखत रूप चराचर मोहा॥
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा।
रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका, प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका।
जातुधान बरूथ बल भंजन। मुनि सज्जन रंजन अघ गंजन॥
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
गुरु वशिष्ठजी की गोद मे श्रीराम
भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी..
श्री राधाजी
जयति मंगलागार, संसारभारापहर, वानराकारविग्रह पुरारी।
ऐसी हरि करत दासपर प्रीति।
ललित अंक कुलिसादिक चारी। नूपुर चारु मधुर रवकारी॥
चरण चिन्ह सहित भगवान् श्री बालकृष्ण
मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं।
अहमप्यागतस्तर्हि यमुनायास्तटं शुभम्।
षट बिकार जित अनघ अकामा। अचल अकिंचन सुचि सुखधामा॥
कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर जट जूट बाँधत सोह क्यों।
'येन केन प्रकारेण रामे बुद्धिं निवेशयेत्।'
नाथ एक आवा कपि भारी । तेहिं असोक बाटिका उजारी ॥
गयउ सभा दरबार तब सुमिरि राम पद कंज।