सबने आँखें मूँदकर फिर जब आँखें खोली तो सब वीरों ने देखा कि सब समुद्र के तीर पर खड़े है, स्वयंप्रभा स्वयं वहाँ गई जहाँ श्री रघुनाथजी थे। उसने जाकर प्रभु के चरण कमलो मे मस्तक नवाया और बहुत प्रकार से विनती की। प्रभु ने उसे अपनी अनपायिनी (अचल) भक्ति दी॥
योगिनी स्वयंप्रभा की कथा