@da_vyas Tweets Collection

1243 bookmarks
Newest
भगवान् श्री रामचंद्रजी ने घोषणा करवा दी, "जो मंगलवार को मेरे अनन्यप्रीतिभाजन महावीर श्री हनुमानजी को जो तेल और सिन्दूर चढ़ायेंगे, उन्हें मेरी प्रसन्नता प्राप्त होगी और उनकी समस्त कामनाओंकी पूर्ति हो जाया करेगी।"
भगवान् श्री रामचंद्रजी ने घोषणा करवा दी, "जो मंगलवार को मेरे अनन्यप्रीतिभाजन महावीर श्री हनुमानजी को जो तेल और सिन्दूर चढ़ायेंगे, उन्हें मेरी प्रसन्नता प्राप्त होगी और उनकी समस्त कामनाओंकी पूर्ति हो जाया करेगी।"
हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाए जाने का रहस्य
·x.com·
भगवान् श्री रामचंद्रजी ने घोषणा करवा दी, "जो मंगलवार को मेरे अनन्यप्रीतिभाजन महावीर श्री हनुमानजी को जो तेल और सिन्दूर चढ़ायेंगे, उन्हें मेरी प्रसन्नता प्राप्त होगी और उनकी समस्त कामनाओंकी पूर्ति हो जाया करेगी।"
भगवान् के अनन्य भक्त गिरिराज श्री गोवर्धन जी के चार दिव्य स्वरूप व उन दिव्य स्वरूपों का दर्शन करने का मार्ग (१/२)
भगवान् के अनन्य भक्त गिरिराज श्री गोवर्धन जी के चार दिव्य स्वरूप व उन दिव्य स्वरूपों का दर्शन करने का मार्ग (१/२)
·x.com·
भगवान् के अनन्य भक्त गिरिराज श्री गोवर्धन जी के चार दिव्य स्वरूप व उन दिव्य स्वरूपों का दर्शन करने का मार्ग (१/२)
भगवान् के अनन्य भक्त गिरिराज श्री गोवर्धन जी के चार दिव्य स्वरूप व दिव्य स्वरूप दर्शन करने का मार्ग (२/२)
भगवान् के अनन्य भक्त गिरिराज श्री गोवर्धन जी के चार दिव्य स्वरूप व दिव्य स्वरूप दर्शन करने का मार्ग (२/२)
·x.com·
भगवान् के अनन्य भक्त गिरिराज श्री गोवर्धन जी के चार दिव्य स्वरूप व दिव्य स्वरूप दर्शन करने का मार्ग (२/२)
सबने आँखें मूँदकर फिर जब आँखें खोली तो सब वीरों ने देखा कि सब समुद्र के तीर पर खड़े है, स्वयंप्रभा स्वयं वहाँ गई जहाँ श्री रघुनाथजी थे। उसने जाकर प्रभु के चरण कमलो मे मस्तक नवाया और बहुत प्रकार से विनती की। प्रभु ने उसे अपनी अनपायिनी (अचल) भक्ति दी॥
सबने आँखें मूँदकर फिर जब आँखें खोली तो सब वीरों ने देखा कि सब समुद्र के तीर पर खड़े है, स्वयंप्रभा स्वयं वहाँ गई जहाँ श्री रघुनाथजी थे। उसने जाकर प्रभु के चरण कमलो मे मस्तक नवाया और बहुत प्रकार से विनती की। प्रभु ने उसे अपनी अनपायिनी (अचल) भक्ति दी॥
योगिनी स्वयंप्रभा की कथा
·x.com·
सबने आँखें मूँदकर फिर जब आँखें खोली तो सब वीरों ने देखा कि सब समुद्र के तीर पर खड़े है, स्वयंप्रभा स्वयं वहाँ गई जहाँ श्री रघुनाथजी थे। उसने जाकर प्रभु के चरण कमलो मे मस्तक नवाया और बहुत प्रकार से विनती की। प्रभु ने उसे अपनी अनपायिनी (अचल) भक्ति दी॥