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भगवान् के अनन्य भक्त गिरिराज श्री गोवर्धन जी के चार दिव्य स्वरूप व उन दिव्य स्वरूपों का दर्शन करने का मार्ग (१/२)
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भगवान् के अनन्य भक्त गिरिराज श्री गोवर्धन जी के चार दिव्य स्वरूप व उन दिव्य स्वरूपों का दर्शन करने का मार्ग (१/२)
भगवान् के अनन्य भक्त गिरिराज श्री गोवर्धन जी के चार दिव्य स्वरूप व दिव्य स्वरूप दर्शन करने का मार्ग (२/२)
भगवान् के अनन्य भक्त गिरिराज श्री गोवर्धन जी के चार दिव्य स्वरूप व दिव्य स्वरूप दर्शन करने का मार्ग (२/२)
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भगवान् के अनन्य भक्त गिरिराज श्री गोवर्धन जी के चार दिव्य स्वरूप व दिव्य स्वरूप दर्शन करने का मार्ग (२/२)
सबने आँखें मूँदकर फिर जब आँखें खोली तो सब वीरों ने देखा कि सब समुद्र के तीर पर खड़े है, स्वयंप्रभा स्वयं वहाँ गई जहाँ श्री रघुनाथजी थे। उसने जाकर प्रभु के चरण कमलो मे मस्तक नवाया और बहुत प्रकार से विनती की। प्रभु ने उसे अपनी अनपायिनी (अचल) भक्ति दी॥
सबने आँखें मूँदकर फिर जब आँखें खोली तो सब वीरों ने देखा कि सब समुद्र के तीर पर खड़े है, स्वयंप्रभा स्वयं वहाँ गई जहाँ श्री रघुनाथजी थे। उसने जाकर प्रभु के चरण कमलो मे मस्तक नवाया और बहुत प्रकार से विनती की। प्रभु ने उसे अपनी अनपायिनी (अचल) भक्ति दी॥
योगिनी स्वयंप्रभा की कथा
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सबने आँखें मूँदकर फिर जब आँखें खोली तो सब वीरों ने देखा कि सब समुद्र के तीर पर खड़े है, स्वयंप्रभा स्वयं वहाँ गई जहाँ श्री रघुनाथजी थे। उसने जाकर प्रभु के चरण कमलो मे मस्तक नवाया और बहुत प्रकार से विनती की। प्रभु ने उसे अपनी अनपायिनी (अचल) भक्ति दी॥